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Showing posts from March, 2020

सत्कर्म करते समय क्यों दी जाती है दक्षिणा;?

*सत्कर्म करते समय क्यों दी जाती है दक्षिणा;?* महालक्ष्मी का कलावतार हैं; ‘दक्षिणा’देवी ‘दक्षिणा’ महालक्ष्मीजी के दाहिने कन्धे (अंश) से प्रकट हुई हैं इसलिए दक्षिणा कहलाती हैं। ये कमला (लक्ष्मी) की कलावतार व भगवान विष्णु की शक्तिस्वरूपा हैं। दक्षिणा को शुभा, शुद्धिदा, शुद्धिरूपा व सुशीला–इन नामों से भी जाना जाता है। ये उपासक को सभी यज्ञों, सत्कर्मों का फल प्रदान करती हैं। गोलोकबिहारी श्रीकृष्ण और दक्षिणा का सम्बन्ध!!!!!!!! गोलोक में भगवान श्रीकृष्ण को अत्यन्त प्रिय सुशीला नाम की एक गोपी थी जो विद्या, रूप, गुण व आचार में लक्ष्मी के समान थी। वह श्रीराधा की प्रधान सखी थी। भगवान श्रीकृष्ण का उससे विशेष स्नेह था। श्रीराधाजी को यह बात पसन्द न थी और उन्होंने भगवान की लीला को समझे बिना ही सुशीला को गोलोक से बाहर कर दिया।   गोलोक से च्युत हो जाने पर सुशीला कठिन तप करने लगी और उस कठिन तप के प्रभाव से वे विष्णुप्रिया महालक्ष्मी के शरीर में प्रवेश कर गयीं। भगवान की लीला से देवताओं को यज्ञ का फल मिलना बंद हो गया। घबराए हुए सभी देवता ब्रह्माजी के पास गए। ब्रह्माजी ने भगवान विष्णु का ध्यान किया। भग...

श्रद्धा ही सद्ज्ञान

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*************** श्रद्धा ही सद्ज्ञान ************** ===================================     तर्क वितर्क गहन शब्दो की मायाजाल इन्सान को भ्रमित कर देती है। गहन शब्दो की फिलसूफ़ीमे संमोहित शिष्य उन्हें ब्रह्मज्ञान समझने लगता है । ध्यान के प्रयत्नोमे दिखनेवाले चित्र विचित्र दृश्यों को महान उपलब्धि समझने लगता है । समजमें न आये ऐसे विधि विधान , कभी न सुने हो ऐसे विचित्र शब्दो वाले मंत्र या तंत्रमार्ग की जूठी ओर भ्रामक प्रचारलीला से आकर्षित होकर सालो तक खुद महान है ऐसा भ्रम पाल लेता है। दो किताब पढ़नेवाले अधूरे महाज्ञानी सबको सलाह देने लगते है । अध्यात्म मार्ग में अपनी मान्यता , कही पढ़ा सुना , किसी ओरो का अनुसरण करना वो सही मार्ग नही है। हरेक व्यक्ति की आंतरिक शरीर रचना , समजदारी , क्षमता अलग अलग होती है । एक सच्चा साधक व्यक्ति की क्षमता अनुसार जो मार्ग दिखाए वो ही करगत हो सकता है । ऋषियो के आश्रम में सभी शिष्यों को एक जैसी विद्या उपासना नही दी जाती थी । व्यक्ति की आंतरिक पहचान कर उनके अनुरूप विधान दिया जाता था । विधान की क्रिया या मंत्र के शब्द सरल हो या गहन कोई फर्क नही पड़...

*चन्द्र द्वारा बाहरी पीड़ा-*

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*चन्द्र द्वारा बाहरी पीड़ा-* *ग्रह , बाहरी पीड़ा और मैने सबसे ज्यादा एक ही ग्रह पीड़ित देखा जो हमारे मन का कारक है चंद्र ।* *चंद्र जब भी सूर्य , राहु और शनि के साथ होता है तब जातक बाहरी बाधाओ , चिंता , अवसाद और निराशा का शिकार बनता है और भूत बाधा भी ऐसे लोगो को ही होती है।* *चंद्र की युति राहु के साथ कही भी हो और लग्न का स्वामी शनि से पीड़ित हो तो ऐसे जातक फालतू के जादू टोने में ज्यादा पड़ते है।* *चंद्र नीच राशि का हो और लग्नेश अस्त हो साथ ही बुध राहु के साथ हो तो जातक को हमेशा यही भ्रम रहता है की किसी ने उसपर कुछ किया है।* *लग्नेश का अष्टम में होना और उस पर राहु की दृष्टि हो एवम चंद्र सूर्य के साथ युत होकर बारवे भाव में बैठे तो भी जातक इन चीजो से पीड़ित होता है।* *मंगल एकादश में अकेला हो और चंद्र आठवे भाव में हो तो जातक तंत्र का शिकार जरूर होता है शर्त है मंगल स्वराशि का ना हो।* *राहु सूर्य के साथ हो  चंद्र शनि के साथ और गुरु नीच का हो तो भी यह बाधा आती है चतुर्दशी का चंद्र हो तो जातक को मानसिक यातना भुगतना पड़ता है।* *छठवे भाव में चंद्र राहु , आठवे में मंगल और बारवे में शनि ...

*राहू -केतू का प्रभाव-*

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*राहू -केतू का प्रभाव-* *राहु-केतु दोनों ही छाया ग्रह हैं। कुंडली में यह सूर्य एवं चंद्र के साथ ग्रहण योग बनाते हैं। राहु भ्रम और केतु चिंताओं एवं कुल की वृद्धि का सूचक है। कुंडली में इनकी स्थिति जातक के जीवन को बहुत प्रभावित करती है। यह दोनों ग्रह सदैव पीड़ा करक नहीं होते। कुंडली में कुछ भावों और ग्रहों के साथ यह जातक को विशेष शुभ फल प्रदान करते हैं। आइए जानते हैं कैसे राहु और केतु की स्थिति जातक के जीवन को प्रभावित करती है।* *राहू की बिभिन्न ग्रहों से युति के विशेष फल-* *राहू-बुध की युति – संकुचित सोच और झूठ बोलने की प्रवृति।* *राहू-शुक्र की युति – अति कामुक।* *राहू-शनि से युति – तंत्र मंत्र का जानकार किन्तु दरिद्र।* *राहू-गुरू से युति – हठ योगी या योग अभ्यास में कुशल।* *राहू-मंगल से युति – खतरनाक कार्यों को करने वाला।* *राहू-सूर्य – खराब आचरण वाला।* *राहू-चन्द्रमा से युति – जीवनभर मानसिक तनावों से परेशान रहने वाला।* *केतु की बिभिन्न ग्रहों से युति के विशेष फल-* *केतु-बुध की युति – लाइलाज बीमारी देता है। पागल, सनकी, चालाक, कपटी, चोर एवं धर्म विरुद्ध आचरण बनाता है।* *केतु-श...

महाराज भगीरथ के कठिन प्रयासों से गंगा अवतरण की कथा.....।।

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महाराज भगीरथ के कठिन प्रयासों से गंगा अवतरण की कथा.....।। भगवती गंगा का धरती पर अवतरण सतयुग में ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तिथि वृहस्पतिवार को हुआ था। प्रस्तुत है माँ गंगा के अवतरण की कथा। पवित्र गंगा नदी:- गंगा, जाह्नवी और भागीरथी कहलानी वाली ‘गंगा नदी’ भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदियों में से एक है। यह मात्र एक जल स्रोत नहीं है, बल्कि भारतीय मान्यताओं में यह नदी पूजनीय है जिसे ‘गंगा मां’ अथवा ‘गंगा देवी’ के नाम से सम्मानित किया जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार गंगा पृथ्वी पर आने से पहले सुरलोक में रहती थी। गंगा का पृथ्वी पर आना-जाना:- तो क्या कारण था जो यह पवित्र नदी धरती पर आई। इसे यहां कौन लाया? गंगा नदी के पृथ्वी लोक में आने के पीछे कई सारी लोक कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन इस सबसे अहम एवं रोचक कथा है पुराणों में। एक पौराणिक कथा के अनुसार अति प्राचीन समय में पर्वतराज हिमालय और सुमेरु पर्वत की पुत्री मैना की अत्यंत रूपवती एवं सर्वगुण सम्पन्न दो कन्याएं थीं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री गंगा:- दो कन्याओं में से बड़ी थी गंगा तथा छोटी पुत्री का नाम था उमा। कहते हैं बड़ी पुत्री गंगा अत्यन्त प्...

देश हित में योगदान करें। #fight Cronavirus

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आज पूरा देश कोरोना नामक वैश्वीक महामारी से ग्रसित है और इस कठिन समय में आप समस्त देशवासी माननीय प्रधानमंत्री जी के निवेदन अनुसार आपसे जितना संभव हो सके अपनी क्षमता अनुसार देश हित में योगदान करें । योगदान के लिए कोई भी सीमा तय नहीं है यह ११ रूपए से लेकर आपके सामर्थ्य अनुसार कुछ भी हो सकता है।  आप सभी बंधुजनो से विनम्र निवेदन है कि आप अपने अंशदान के बाद अपने स्क्रीन शाट कमैंट कर के अवश्य भेजें जिन्हें हम आने वाले समय में अपने पेज पर पोस्ट करेंगे।।  घर में रहें सुरक्षित रहें स्वस्थ रहें।  धन्यवाद 

एक हुआ था रक्त बीज - राक्षस !

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एक हुआ था रक्त बीज - राक्षस ! रक्तबीज एक ऐसा दानव था जिसे यह वरदान था की जब जब उसके लहू की बूंद इस धरती पर गिरेगी तब तब हर बूंद से एक नया रक्तबीज जन्म ले लेगा जो बल , शरीर और रूप से मुख्य रक्तबीज के समान ही होगा | अत: जब भी इस दानव को अस्त्रों ,शस्त्रों से मारने की कोशिश की जाती , उसके लहू की बूंदों से अनेको रक्तबीज पुनः जीवित हो जाते | रक्तबीज दैत्यराज शुम्भ और निशुम्भ का मुख्य सेनानायक था और उनकी सेना का माँ भगवती के विरुद्ध प्रतिनिधित्व कर रहा था |  शिव के तेज से प्रकट माहेश्वरी देवी , विष्णु के तेज से प्रकट वैष्णवी , बह्रमा के तेज से बह्रमाणी भगवती के साथ मिलकर दैत्यों से युद्ध कर रही थी | जब भी कोई देवी रक्तबीज पर प्रहार करती उसकी रक्त की बूंदों से अनेको रक्तबीज पुनः जीवित हो उठते | तब देवी चण्डिका ने काली माँ को अपने क्रोध से अवतरित किया | माँ काली विकराल क्रोध वाली और उनका रूप ऐसा था की काल भी उन्हें देख कर डर जाये |  देवी ने से कहा की तुम इस असुर की हर बूंद का पान कर जाओ जिससे की कोई अन्य रक्तबीज उत्पन्न ना हो सके | ऐसा सुनकर माँ काली ने रक्तबीज की गर्दन का...

पूस की रात मुंशी प्रेमचन्द

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पूस की रात हल्कू ने आकर स्त्री से कहा- सहना आया है, लाओ, जो रुपये रखे हैं, उसे दे दूँ, किसी तरह गला तो छूटे । मुन्नी झाड़ू लगा रही थी। पीछे फिरकर बोली- तीन ही तो रुपये हैं, दे दोगे तो कम्मल कहाँ से आवेगा ? माघ-पूस की रात हार में कैसे कटेगी ? उससे कह दो, फसल पर दे देंगे। अभी नहीं । हल्कू एक क्षण अनिश्चित दशा में खड़ा रहा । पूस सिर पर आ गया, कम्मल के बिना हार में रात को वह किसी तरह नहीं जा सकता। मगर सहना मानेगा नहीं, घुड़कियाँ जमावेगा, गालियाँ देगा। बला से जाड़ों में मरेंगे, बला तो सिर से टल जाएगी । यह सोचता हुआ वह अपना भारी- भरकम डील लिए हुए (जो उसके नाम को झूठ सिद्ध करता था ) स्त्री के समीप आ गया और खुशामद करके बोला- ला दे दे, गला तो छूटे। कम्मल के लिए कोई दूसरा उपाय सोचूँगा। मुन्नी उसके पास से दूर हट गयी और आँखें तरेरती हुई बोली- कर चुके दूसरा उपाय ! जरा सुनूँ तो कौन-सा उपाय करोगे ? कोई खैरात दे देगा कम्मल ? न जाने कितनी बाकी है, जों किसी तरह चुकने ही नहीं आती । मैं कहती हूँ, तुम क्यों नहीं खेती छोड़ देते ? मर-मर काम करो, उपज हो तो बाकी दे दो, चलो छुट्टी हुई । बाकी चुकाने ...

मोबाइल फोटोग्राफी Mobile Photography

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हेल्लो प्यारे दोस्तों आज मैं आपके साथ कुछ मोबाइल द्वारा खींची गई कुछ फोटो साझा कर रहा अगर अच्छी लगे तो लाइक जरुर करे देना। 1.   2. 3. 4. 5. 6.  7. 8. 9.  10. 11. 12.

महामृत्युंजय मंत्र का महत्व

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देशवासियों को बचाने के लिये सिर्फ 11 बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप सब लोग प्रतिदिन 21 दिन तक करे। महामृत्युंजय मंत्र का महत्व- माना जाता है कि इस मंत्र का जाप करने से हर तरह के रोग व बीमारी से छुटकारा पाया जा सकता है। इसके अलावा लगातार जाप इस चमत्कारी मंत्र का जाप करने से घर में धन और समृद्धि आती है। वहीं ज्योतिष विशेषज्ञों का कहना है कि इस मंत्र का जाप सवा लाख बार करने से सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। सिर्फ 2 करोड़ लोग भी प्रतिदिन 21 दिन तक करे तो कुल मिला कर   504 करोड़ जाप होगा । 504 का योग 9 होता है ऑयर 108 का योग भी 9 होता है।  निश्चय मानीय मंत्र की शक्ति बहुत होती है और यह पूरे देश मे एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार पैदा करेगी।  करके देखे ,करके देखने मे कोई हर्ज नही है। मैंने शुरू कर दिया है  आप भी कीजिये। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृत:ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌॥ यह त्रयम्बक "त्रिनेत्रों वाला", रुद्र का विशेषण जिसे बाद में शिव ...

शनि और चंद्रमा जब एक साथ कुंडली में हो

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शनि और चंद्रमा जब एक साथ कुंडली में हो .......................................................  चंद्रमा हमारा मन है l  मन  सबसे अधिक चंचल होता है l  चंद्रमा ही हमारा कल्पना है l  कल्पनाशील आदमी तभी हो सकता है जब चंद्रमा स्वतंत्र हो और चंद्रमा बलवान  हो l  यह जलकारक ग्रह है l जल से संबंधित सभी चीजों का यह प्रतिनिधित्व करता है जैसे दूध, जल ,  फल , सब्जी , फूल  l  अगर किसी  पदार्थ  में भी द्रव्य मिश्रित है यानी कि  जल मिश्रित है l  समझ लीजिए कि चंद्रमा का गुण है उसमें चाहे जिस रूप में हो l  जैसे  समझिए घी  इसमें गुरु के साथ-साथ चंद्र का भी योग  है  क्योंकि इसमें जल का अंश है l  इसी प्रकार शराब के साथ है l  जल के साथ-साथ जहर भी है  यानी चंद्रमा और शनि दोनों का योग है  चंद्रमा और राहु भी कह सकते हैं   क्योंकि राहु भी जहर है l स्त्री कारक ग्रह है अतः यह स्त्री का भी प्रतिनिधित्व करता है l   आइए शनि  की बात करते हैं l  कुंडली में अच्छा रहे...

*प्रेत श्राप* Pret Sharap Kya hota hai??

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*प्रेत श्राप* *जन्म-पत्रिका के किसी भी भाव में शनि-राहू या शनि-केतू की युति हो तो प्रेत श्राप का निर्माण करती है | शनि-राहू या शनि-केतू की युति भाव के फल को पूरी तरह बिगाड़ देती है तथा दलदललाख यत्न करने पर भी उस भाव का उत्तम फल प्राप्त नहीं होता है |वह चाहे धन का भाव हो, सन्तान सुख, जीवन साथी या कोई अन्य भाव | भाग्य हर कदम पर रोड़े लेकर खड़ा सा दिखता है जिसको पार करना बार-बार की हार के बाद जातक के लिए अत्यन्त कठिन होता है | शनि + राहू = प्रेत श्राप योग यानि ऐसी घटना जिसे अचनचेत घटना कहा जाता है अचानक कुछ ऐसा हो जाना जिसके बारे में दूर दूर तक अंदेशा भी न हो और भारी नुक्सान हो जाये |  इस योग के कारण एक के बाद एक मुसीबत बडती जाती है यदि शनि या राहू में से किसी भी ग्रह की दशा चल रही हो या आयुकाल चल रहा हो यानी 7 से 12 या  36 से लेकर 47 वर्ष तक का समय हो तो मुसीबतों का दौर थमता नही है |*  *कई बार ऐसा भी होता है किसी शुभ या योगकारी ग्रह की दशा काल हो और शनि + राहू रूपी प्रेत श्राप योग की दृष्टि का दुष्प्रभाव उस ग्रह पर हो जाये तो उस शुभ ग्रह के समय में भी मुसीबतें पड़ती...

आरती कुंबिहारी की Aarti Kunj Bihari ki

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आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला। श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला। गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली। लतन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक; ललित छवि श्यामा प्यारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ x2 कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं। गगन सों सुमन रासि बरसै; बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग; अतुल रति गोप कुमारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ x2 जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा। स्मरन ते होत मोह भंगा; बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच; चरन छवि श्रीबनवारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ x2 चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू। चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू; हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद; टेर सुन दीन भिखारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ x2 आरती कुंजबिह...

Shiva Chalisa Lyrics

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॥दोहा॥ जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान। कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥ ॥चौपाई॥ जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥ भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥ अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥ वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥ मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥ कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥ नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥ कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥ देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥ किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥ तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥ आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥ त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥ किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥ दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥ वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥ प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥ कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥ पूजन रामच...

हनुमान चालीसा Hanuman Chalisa

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Hanuman Chalisa Jai Shree Ram ॥दोहा॥ श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि । बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥ बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार । बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥ ॥चौपाई॥ जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥ राम दूत अतुलित बल धामा । अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥ महाबीर बिक्रम बजरङ्गी । कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥ कञ्चन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥ हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै । काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥ सङ्कर सुवन केसरीनन्दन । तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥ बिद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥७॥ प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥ सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लङ्क जरावा ॥९॥ भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥ लाय सञ्जीवन लखन जियाये । श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥ रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥ सहस बदन तुह्मारो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥ सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥ जम...